SHIV CHALISA (शिव चालीसा)PDF DOWNLOAD

By SHIVAM KASHYAP

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हर हर महादेव,

मै श्वेता हु, आज मै आप सभी को शिव चालीसा पीडीऍफ़ प्रदान कर रही हु जिससे आप सभी को शिव जी के चलिशा में क्या क्या है पता नहीं होगा| तो आप सभी पीडीऍफ़ से पढ़ सकते है। मैंने अपने लेख में निचे शिव चालीसा लिखी हु साथ में उसका अर्थ भी लिखी हु।

शिव चालीसा हिंदू धर्म में मुख्य देवताओं में से एक भगवान शिव को समर्पित एक भक्तिमय स्तुति है। यह माना जाता है कि भक्ति और समर्पण के साथ शिव चालीसा का जाप शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक विकास लाता है। इस स्तोत्र में चालीस श्लोक हैं, जो हर श्लोक में भगवान शिव की विभिन्न गुणों और विशेषताओं की प्रशंसा करते हैं।

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यहां शिव चालीसा उसके अर्थ के साथ है:

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान,

कहत अयोध्या दास तुम, देहु अभय वरदान॥

अर्थ: माता गिरिजा के पुत्र भगवान गणेश की जय हो, जो शुभता और ज्ञान का अभिव्यक्ति है। अयोध्या दास भगवान शिव से अभय वरदान की मांग करता है।

जय गिरिजापति दीन दयाला, सदा करत संतन प्रतिपाला।

भाल चंद्रमा सोहत नीके, कानन कुंडल नगफनी के॥

अर्थ: मांगलिक और ज्ञानी होने के साथ भगवान गिरिजापति, मां भगवती पार्वती के दयालु भगवान जो सदा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। उनके मुख पर चंद्रमा के समान निखार होता है और उनके कान में कुंडल और नाथनी शोभा देते हैं।

चन्द्र समेत बस्त्रावटिका, शोभित दिगम्बर राजताजा। देवन के देव महादेव, त्रिभुवन सुलभ अवतार तेजा॥

अर्थ: भगवान शिव सभी दिशाओं में विस्तृत बस्त्रावटिका के साथ सुंदर दिगंबर रूप में आभूषण करते हुए शोभा पाते हैं। वे देवों के देव महादेव हैं और उनकी ज्योति त्रिभुवन में अवतरित होती है।

ब्रह्मा विष्णु सदा शिव ध्यावे, संतत नरद शारदाहर सवारे। जगज्जननी जय जय जय, अनन्त अविधि भारति उबारे॥

अर्थ: सभी संत और ऋषि शिव, ब्रह्मा और विष्णु का स्मरण करते हुए सदा अवगुणों से मुक्त होते हैं। संत नारद और शारदा माता भगवती सारस्वती ने भी शिव की स्तुति की है। जगजननी देवी पार्वती की जय हो, जो समस्त भूतों की रक्षा करती हैं और अनंत संकट से हमें उबारती हैं।

ब्रह्मादिक सुमिरत नहिं तृकाल,

जके काल भव भयहारिणी दुर्गा जय जय जय॥

अर्थ: त्रिकाल के ज्ञान से वंचित रहने वाले ब्रह्मा आदि देवताओं द्वारा भी शिव का स्मरण नहीं किया जा सकता। दुर्गा माँ, जो भय को नष्ट करने वाली हैं, की जय हो।

त्रिपुर ताप की नाशिनी, तुम सम ही शम्भु कुंभकर्ण निवासिनी। अंधकासुर वध भंजनी, सुरमुनिजन मन रंजनी॥

अर्थ: त्रिपुरासुर को नष्ट करने वाली महादेवी तुम हो, जो शम्भु और कुंभकर्ण के साथ निवास करती हो। तुम अंधकासुर का वध करने वाली हो और देवताओं और मुनियों के मन को आनंदित करने वाली हो।

ब्रह्म विष्णु और महेश, तीनों रूप तुम्हारे जैसे हैं।

अगम अगोचर त्रिभुवन में, सब विधि तुम्हारे आविर्भाव विवेक विशेष॥

अर्थ: तुम्हारे जैसे रूप ब्रह्मा, विष्णु और महेश के भी होते हैं। तुम अगम और अगोचर हो, त्रिभुवन में सभी विधियों के अनुसरण में आते हो और विशेष बुद्धि वालों को आविर्भाव करते हो।

त्रिगुण स्वामी जग पालक त्रिविक्रम सुखदाता, भव भयहारी अखिल जगत के पालक॥

भक्त वचन से आनन्द भरी, मनोकामना फल प्रदायक॥

अर्थ: त्रिविक्रम तीनों लोकों के स्वामी हैं और सुख का दाता हैं। आप सभी लोगों के रक्षक हैं और भक्तों के वचन से आनंदित होते हैं। आप मनोकामनाओं को पूरा करने वाले हो।

ज्ञान ध्यान शक्ति भक्ति भाव, जगत के पालनहार हमारे तारक। जयति जयति जय शंकर, जय जय जय महादेव॥

अर्थ: ज्ञान, ध्यान, शक्ति, भक्ति और भाव से सम्पन्न होकर आप हमारे रक्षक होते हैं और हमें तारक मार्ग प्रदान करते हैं। शंकर की जय हो, महादेव की जय हो।

शिव चालीसा के अनुवाद में उल्लिखित श्लोकों का अभिप्राय यह है कि महादेव हमेशा हमारे साथ होते हैं और हमें समस्त दुःखों से मुक्ति दिलाते हैं। इसे पढ़ने और सुनने से मनुष्य के आंतरिक शांति और स्थिरता की प्राप्ति होती है।

वस्त्र विराजत टिके चन्दन साजे, श्रवण मंद्रित मुख महशुषाजे॥

देव जी शंकर की जय, कैलाश पति शंकर की जय॥

अर्थ: आपके वस्त्र चन्दन से सजे हुए हैं और आपका श्रवण मनोहारी गान सुनते हैं। शंकर देव की जय हो, कैलाश पति शंकर की जय हो।

महादेव की जय करो, शिव शंकर की जय करो।

ब्रह्मा विष्णु सदा यह ध्यावे, नरद शारद एक अखिल नावे॥

अर्थ: महादेव की जय करें, शिव शंकर की जय करें। ब्रह्मा और विष्णु नित्य उनका ध्यान करते हैं, नारद और शारदा भी उनका स्मरण करते हैं।

शिव धर्म संसार के उद्धारक, संतोष वृद्धि और दुःखहारक। जयति जयति जय शंकर, जय जय जय महादेव॥

अर्थ: शिव धर्म संसार के उद्धारक हैं और संतोष, वृद्धि और दुखहारी हैं। शंकर की जय हो, महादेव की जय हो।

शिव चालीसा के अंतिम श्लोक में उल्लिखित श्लोकों का अर्थ है कि महादेव हमेशा हमारे साथ होते हैं और हमें संतोष, वृद्धि और दुख से मुक्त रखते हैं। हमेशा शिव की जय हो और महादेव की जय हो।

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शिव चालीसा का पाठ करने से हमें मानसिक शांति और संतुलन मिलता है। इसके अलावा, शिव चालीसा के पाठ से हमें शिव जी की कृपा मिलती है और हमें दुःख से मुक्ति मिलती है। शिव चालीसा का पाठ करने से हमें शिव जी की भक्ति में लीन होने का अनुभव मिलता है और हमें उनकी कृपा से धन, समृद्धि और सुख की प्राप्ति होती है।

अतः, शिव चालीसा का पाठ करना हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इससे हमें शिव जी की कृपा प्राप्त होती है और हमें अपनी जिंदगी में सफलता, समृद्धि और सुख की प्राप्ति होती है।

शिव चालीसा का अधिक से अधिक पाठ करने से हमें मानसिक शांति मिलती है और हमारे मन में उत्तेजना, चिंता और अशांति कम होती है। इसके साथ ही, शिव चालीसा का पाठ करने से हमारी आत्मा और मन शुद्ध होते हैं और हमें दुःखों से मुक्ति मिलती है। शिव चालीसा के पाठ करने से हम शिव जी के समीप जाने का अनुभव प्राप्त करते हैं और हमारे मन में भक्ति का भाव उत्पन्न होता है।

शिव चालीसा के बोल और उनके अर्थ हमें बताते हैं कि शिव जी हमारे मन, आत्मा और शरीर के संतुलन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। शिव जी हमारे जीवन में सदा सुख, शांति, समृद्धि और सफलता की प्राप्ति के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। शिव चालीसा के पाठ से हम शिव जी की कृपा प्राप्त करते हैं और हमें उनसे आशीर्वाद प्राप्त होता है।

इसलिए, शिव चालीसा को नियमित रूप से पढ़ना बहुत महत्वपूर्ण है। इससे हमें शिव जी की कृपा मिलती है और हमारी जिंदगी में समृद्धि, सफलता, सुख और शांति की प्राप्ति होती है|

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