हेलो दोस्तों,
नाम श्वेता है और आज इस पोस्ट में आप सभी दोस्तों का स्वागत है। आज मै आप सभी सुहागनों के लिए वट सावित्री व्रत कथा लेके आई हु। हमारे हिन्दू धर्म में सुहागनों को वट सावित्री पूजा से पति की लम्बी उम्र के लिए पूजा की जाती है|
वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) हिन्दू महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है जो श्रवण मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है। यह व्रत पति की दीर्घायु और सुख-शांति के लिए पत्नी द्वारा रखा जाता है। इस व्रत के दौरान, महिलाएं एक वट वृक्ष की पूजा करती हैं और सावित्री देवी की आराधना करती हैं।
वट सावित्री व्रत कथा (DOWNLOAD)
एक समय की बात है, एक सुंदरी और सम्मोहनी नामक ब्राह्मण व्रत पुरस्कार में आईं। उनके पति का नाम सत्यवान था। उनके पति की मृत्यु के कारण निराश होकर ने ने उसे एक पर्वत में आवास करने का विचार किया। यह पर्वत उनकी प्राणीभूत भगवान वट वृक्ष था। वह वट वृक्ष अत्यंत महत्त्वपूर्ण था, क्योंकि उसे प्रेमी योगी श्रीकृष्ण ने अपनी चाहती में रखा था।
सविता ने व्रत और पूजा की विधि के साथ वट सावित्री व्रत की शुरुआत की। इस व्रत में सविता ने तेल और सुहागन का सामान अपने बालों में लगाया और एक वट वृक्ष को गले में डाल रखा। वह वट वृक्ष के पास आकर प्रार्थना करने लगीं और भगवान श्रीकृष्ण की कृपा का आशीर्वाद मांगने लगीं।
अगले दिन, सविता वत सावित्री व्रत का पूर्णाहुति करने के लिए पूजा करने गईं। उसके बाद उसने अन्न, फल, और आदर्श स्त्री के रूप में श्रीकृष्ण की पूजा की। वह भगवान को सावित्री व्रत की योग्यता और उनकी सारी मांगों के लिए धन्यवाद देने के लिए मन्दिर में प्रणाम किया।
दूसरे दिन, सविता ने व्रत को पूर्ण किया और अपने पति की सुरक्षा और लंबी उम्र के लिए ईश्वर की प्रार्थना की। उसकी संतान बढ़ी और उनके पति को जीवित भी रखा गया। सभी लोग उनकी सदभावना को देखकर चमत्कारी मान गए और उन्होंने इस व्रत का महत्व मान्यता दी।
वट सावित्री व्रत की कथा इस प्रकार समाप्त होती है। यह व्रत हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है और स्त्रियाँ अपने पति की लंबी उम्र के लिए इसे आजमाती हैं।
वट सावित्री पूजा विधि
सामग्री:
- वट वृक्ष की मूली या छोटी डंठल की एक शाखा
- गंगाजल या पवित्र जल
- पूजा सामग्री (रोली, चावल, सुपारी, नारियल, कलश, कपूर, धूप, दीप, अगरबत्ती, फूल, पुष्पमाला)
- पूजा का वस्त्र (साड़ी या चुनरी)
- व्रत कथा की पुस्तक
- आरती की थाली
- प्रशाद (मिठाई या फल)
पूजा विधि:
- सबसे पहले, अपने घर में एक पवित्र स्थान तैयार करें जहां आप वट सावित्री की पूजा करेंगे।
- पूजा स्थान पर अपने व्रत का वस्त्र सजाएं और उस पर कलश रखें। कलश में गंगाजल डालें और उसे लोटा में संग्रहित करें।
- वट सावित्री की पूजा के लिए वट वृक्ष की मूली या छोटी डंठल की एक शाखा को एक धागे या पतंग के समान बांध लें।
- पूजा स्थान पर वट वृक्ष को रखें और उसे प्रणाम करें।
- अब रोली और चावल का तिलक लगाएं और वट वृक्ष के आसपास चावल रखें।
- व्रत कथा को पढ़ें या सुनें और मन्दिर में वट सावित्री के सामने प्रणाम करें।
- अब धूप, दीप, अगरबत्ती जलाएं और पुष्पमाला और फूलों से पूजा करें।
- पूजा के बाद, आरती गाएं और व्रत की प्रसाद बांटें।
यहीं तक कि वट सावित्री पूजा की विधि है। यह पूजा संतान सुख और पति की लंबी उम्र की कामना के साथ संपन्न होती है। इसे विधिवत और भक्ति पूर्वक करें और व्रत कथा का पालन करें।
वट सावित्री आरती
यहां वट सावित्री आरती का पाठ है:
यहां वट सावित्री आरती का पाठ है:
आरती श्री सावित्री माता की
जय जय सावित्री माता, जग जननी जगदम्बे। सदा भवन की निधि तुम हो, हृदय अंबे अम्बे॥
जिसकी प्रसाद व्रत करें, जीवन उसका सुहाना। मान और सम्मान उसको, दुःख संताप विदारें॥
दुर्गा रूप से जगमग ज्योति, तुम्ही हो ब्रह्माणी। जननी तुम हो वैष्णो देवी, तुम ही हो नर्मदा जी॥
बांसुरी ध्वनि बजे, ध्वनि में जग मग झलके। तुम्ही अंधकार भगानेवाली, भव-भय विनाशिनी जगजननी॥
जगजननी जगदम्बे, त्रिभुवन की प्रभुता है तुम में। सुन्दर सुन्दर रूप धरी, त्रिगुण विभूति है तुम में॥
भक्तों की भाव-भक्ति को, पूर्ण करो माँ शक्ति। दीजिये सद्गति प्राप्ति को, कृपा बनी रहो ज्योति॥
जय जय सावित्री माता, जग जननी जगदम्बे। सदा भवन की निधि तुम हो, हृदय अंबे अम्बे॥
आरती करें मन श्रद्धा से, अर्पित करें ज्योति को। मांगें मन की मनोकामना, मनोबल से पूर्ण करें॥
सावित्री माता की आरती, जो कोई गावे। भक्ति-भाव से उसकी, होत सुख सम्पूर्ण करें॥
जय जय सावित्री माता, जग जननी जगदम्बे। सदा भवन की निधि तुम हो, हृदय अंबे अम्बे॥
सावित्री माता की जय॥
यह आरती वट सावित्री व्रत के दौरान सावित्री माता की पूजा के समय पाठ की जाती है। यह आपको इस व्रत के पवित्र अवसर पर संग्रहीत कर सकते हैं।
वट सावित्री व्रत का महत्व
वट सावित्री व्रत भारतीय संस्कृति में महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण एक व्रत है। यह व्रत हिन्दू महिलाओं द्वारा व्रत किया जाता है तथा इसे धार्मिक रूप से विशेष महत्व दिया जाता है। यह व्रत सावित्री देवी की पूजा और उनके धर्मपति सतीवान से उनकी विवाहिता जीवन की लम्बाई और उनकी पतिव्रता की मान्यता को याद दिलाता है।
वट सावित्री व्रत का आयोजन हिन्दू पंचांग के ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को किया जाता है, जिसे सावित्री अमावस्या या ज्येष्ठ अमावस्या के रूप में भी जाना जाता है। यह व्रत सदियों से मातृ शक्ति और स्त्री धर्म की प्रतीक माना जाता है और सावित्री माता की कथा को स्मरण करता है।
सावित्री माता की कथा उस समय से संबंधित है जब सावित्री ने यमराज से अपने पति की प्राण बचाने के लिए व्रत रखा था। सावित्री द्वारा दृढ़ता, पतिव्रता, और प्रेम की प्रतिष्ठा की मिसाल प्रस्तुत की गई है। महिलाएं इस व्रत के दौरान सदीयों से अपने पतियों की दीर्घायु एवं सुखी जीवन की कामना करती हैं। इस दिन महिलाएं धर्मपति के लंबे आयु की कामना के साथ वट वृक्ष की पूजा करती हैं और व्रत के नियमों का पालन करती हैं।
वट सावित्री व्रत के महत्वपूर्ण उपास्य पर्वों में से एक है, जो महिलाओं की पतिव्रता और प्रेम की मान्यता को दर्शाता है। यह व्रत उन्हें शक्ति और सामर्थ्य प्रदान करता है और उनके पतियों के लंबे और सुखी जीवन की कामना करने का अवसर देता है। व्रत करने वाली महिलाएं धार्मिक तथा सामाजिक उपकारों का भी नियमित रूप से पालन करती हैं, जिससे उनका आत्मविश्वास और सामरिकता मजबूत होती है।
इस प्रकार, वट सावित्री व्रत भारतीय महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उन्हें पतिव्रता, प्रेम, और शक्ति की मान्यता को जीने का प्रेरणा स्रोत प्रदान करता है। यह व्रत महिलाओं के विभिन्न सामाजिक और धार्मिक गुणों का प्रतीक है और उन्हें परिवार, समाज, और समाज की सेवा में समर्पित होने का संकेत देता है।
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