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ऋग्वेद भारतीय संस्कृति की प्राचीनतम और महत्वपूर्ण धार्मिक पुस्तकों में से एक है। यह एक संहिता है और वैदिक साहित्य का प्रमुख भाग है। ऋग्वेद वेदों की एक समूहिक संग्रह है और यह भारतीय धर्म, दर्शन, राष्ट्रीयता और साहित्य के विभिन्न पहलुओं का प्रमुख स्रोत माना जाता है। ऋग्वेद में सम्पूर्ण मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं पर विचार किए गए हैं।

ऋग्वेद को चार संहिताओं (सूक्त संहिता) में विभाजित किया जाता है:
- मंडल 1-10: यह संहिता सबसे पुरानी है और इसमें सबसे अधिक सूक्त हैं। यहां पर्यावरण, प्राकृतिक तत्वों, देवताओं और यज्ञों की महिमा पर ध्यान केंद्रित है।
- मंडल 11: यह मंडल एकल ऋषि विश्वामित्र द्वारा संग्रहीत है। यहां धर्म, समाज, युद्ध, राजनीति और आर्यों के इतिहास के विषय पर चर्चा की गई है।
- मंडल 12: यह मंडल मांडूक्योपनिषद् के रूप में भी जाना जाता है। इसमें आत्मा, ब्रह्मा, ज्ञान और मोक्ष के प्रश्नों पर विचार किए गए हैं।
- मंडल 13-18: यह संहिता बाकी संहिताओं से कम विख्यात है। यहां ऋषियों के शिक्षाप्रद वचन, आपसी बहस और सृष्टि के विषयों पर चर्चा की गई है।
यह थे ऋग्वेद के संक्षेप में कुछ महत्वपूर्ण बातें हिंदी में। यदि आप अधिक जानकारी चाहते हैं, तो आप ऋग्वेद की हिंदी ट्रांसलेशन या टिका खोजने के लिए पुस्तकालयों या इंटरनेट पर खोज सकते हैं।
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ऋग्वेद का महत्व:
ऋग्वेद भारतीय धर्म, दर्शन, राष्ट्रीयता, और साहित्य के विभिन्न पहलुओं का प्रमुख स्रोत माना जाता है। यह संहिताओं (सूक्त संहिता) के रूप में व्यवस्थित है और प्राचीनतम वेदों में से एक है। ऋग्वेद में मन्त्रों की संख्या लगभग 10,552 है और इन्हें दस मंडलों में विभाजित किया गया है। ऋग्वेद के मन्त्रों में देवताओं, यज्ञों, प्रकृति तत्वों, आदित्यों, देवीदेवताओं, और ऋषियों की महिमा पर चर्चा होती है। यह विभिन्न यज्ञों के पठनीय मन्त्रों का संग्रह भी है जो वैदिक संस्कृति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
ऋग्वेद की संरचना:
ऋग्वेद के मन्त्रों को चार संहिताओं में विभाजित किया जाता है। प्रथम संहिता (मंडल 1-10) सबसे पुरानी है और इसमें सबसे अधिक मन्त्र होते हैं। इसमें प्रकृति तत्वों, देवताओं, यज्ञों, और पर्यावरण की महिमा पर ध्यान केंद्रित होता है। द्वितीय संहिता (मंडल 11) एकल ऋषि विश्वामित्र द्वारा संग्रहीत है। इसमें धर्म, समाज, युद्ध, राजनीति और आर्यों के इतिहास के विषय पर चर्चा की गई है। तृतीय संहिता (मंडल 12) मांडूक्योपनिषद् के रूप में भी जानी जाती है और इसमें आत्मा, ब्रह्मा, ज्ञान, और मोक्ष के प्रश्नों पर विचार किए गए हैं। चौथी संहिताएं (मंडल 13-18) बाकी संहिताओं से कम विख्यात हैं। यहां ऋषियों के शिक्षाप्रद वचन, आपसी बहस, और सृष्टि के विषयों पर चर्चा होती है।
ऋग्वेद की भाषा:
ऋग्वेद की भाषा वैदिक संस्कृत में है, जो प्राचीन भारतीय साहित्य का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसकी भाषा का प्रयोग अत्यंत कठिन और पौराणिक है, और इसमें अनुच्छेद, पद, सूक्त, और रचनात्मकता के विभिन्न आयाम होते हैं। इसमें संस्कृत भाषा की उच्चतम और सुंदरतम रचनाएं मौजूद हैं जो वैदिक साहित्य की विशेषता है।
ऋग्वेद के विषय:
ऋग्वेद के मन्त्रों में विभिन्न विषयों पर चर्चा होती है। इसमें देवताओं, देवीदेवताओं, आदित्यों, प्रकृति तत्वों, विज्ञान, ऋषि, यज्ञ, सृष्टि के विषय, और मानव-दर्शन की बातें शामिल हैं। ऋषि के संबंध में भी उनके जीवन और उनकी वाणी का महत्वपूर्ण वर्णन होता है। यज्ञों और हवनों की प्रशंसा भी ऋग्वेद में मिलती है जो वैदिक सामाजिक और धार्मिक प्रथाओं का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
ऋग्वेद का महत्वपूर्ण योगदान:
ऋग्वेद मानव जीवन, आध्यात्मिकता, और आर्य संस्कृति के विभिन्न पहलुओं का महत्वपूर्ण स्रोत है। यह वैदिक साहित्य का आधार है और भारतीय धर्म और संस्कृति के विभिन्न विधानों की आधारशिला है। ऋग्वेद के मन्त्र ध्यान, उत्साह, दानशीलता, धार्मिकता, और सहिष्णुता की महिमा को प्रशंसा करते हैं। इससे मनुष्यों को धार्मिक मार्गदर्शन, सद्गुणों का विकास, और समृद्ध जीवन की प्रेरणा मिलती है।

सारांश:
ऋग्वेद भारतीय संस्कृति की मूलभूत धारा है और इसकी महत्वपूर्णता विश्वभर मान्यता प्राप्त है। यह एक संकलन है जिसमें विभिन्न विषयों पर ऋषियों के वचन और धर्म, दर्शन, राष्ट्रीयता, और साहित्य के महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा होती है। इसकी भाषा वैदिक संस्कृत में है और इसमें संस्कृति, इतिहास, और मनोविज्ञान की अद्भुत ज्ञानवर्धक बातें होती हैं। ऋग्वेद अपार ज्ञान, धार्मिकता, और आध्यात्मिकता की स्रोत है जो मानव जीवन को प्रेरित करता है और समृद्धि की ओर अपने पाठकों को आग्रह करता है।
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